नई दिल्ली, 6 जुलाई 2025: तृणमूल कांग्रेस (TMC) की तेजतर्रार सांसद महुआ मोइत्रा ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए Special Intensive Revision (SIR) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने इस प्रक्रिया को संविधान के कई अनुच्छेदों और RP एक्ट 1950 के खिलाफ बताते हुए इसे लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए एक बड़ा खतरा करार दिया है।
महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि चुनाव आयोग का 24 जून, 2025 का आदेश जिससे बिहार में विशेष मतदाता सूची संशोधन की शुरुआत हुई है, वह अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि न केवल इस आदेश को रद्द किया जाए, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए।
क्या है ‘Special Intensive Revision’ (SIR)?
24 जून को चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी कर बिहार में Special Intensive Revision of Electoral Rolls की प्रक्रिया शुरू की। इसका उद्देश्य था मतदाता सूची से अयोग्य नामों को हटाना और सिर्फ पात्र नागरिकों को ही सूची में बनाए रखना।
इस संशोधन प्रक्रिया में बूथ स्तर अधिकारी (Booth Level Officers – BLOs) घर-घर जाकर सर्वे कर रहे हैं और मतदाताओं से नागरिकता के प्रमाण मांग रहे हैं। जिनके पास अपेक्षित दस्तावेज नहीं हैं, उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जाने का खतरा है।
महुआ मोइत्रा की आपत्ति क्या है?
महुआ मोइत्रा ने वकील नेहा राठी के माध्यम से दायर याचिका में कहा है:
“यह देश में पहली बार हो रहा है जब पहले से वोट डाल चुके नागरिकों से फिर से अपनी नागरिकता साबित करने को कहा जा रहा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि नागरिकता साबित करने के लिए माता-पिता में से किसी एक की नागरिकता के दस्तावेज मांगना अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के खिलाफ है। यह अतिरिक्त योग्यता है, जिसकी न संविधान में बात है और न ही RP Act में।
The @ECISVEEP is now @BJP4India ‘s arm – executing its Machiavellian plans on ground. Has forgotten its constitutional mandate to providing enabling services to citizens to exercise their franchise. pic.twitter.com/rRKI6pmXwg
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) July 6, 2025
NGO और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी आपत्ति
सिर्फ महुआ मोइत्रा ही नहीं, बल्कि मशहूर NGO Association for Democratic Reforms (ADR) ने भी इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका में कहा गया है:
“यह आदेश बिना किसी उचित प्रक्रिया के लाखों वैध मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर कर सकता है, जिससे लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।”
याचिका में यह भी कहा गया है कि इस संशोधन के लिए दिया गया समय अत्यंत कम है और दस्तावेजों की मांग अनुचित एवं अव्यवहारिक है। इससे गरीब और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के नाम सूची से हट सकते हैं।
PUCL (People’s Union for Civil Liberties) और योगेन्द्र यादव जैसे अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस आदेश के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की हैं।
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चुनाव आयोग का पक्ष क्या है?
चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया जरूरी है क्योंकि:
- बिहार में शहरीकरण तेजी से हो रहा है।
- प्रवासियों की संख्या बढ़ी है।
- कई नागरिक मतदाता बनने की उम्र पार कर चुके हैं।
- मृतकों की जानकारी अपडेट नहीं हो रही है।
- अवैध विदेशी नागरिकों के नाम भी सूची में शामिल हो सकते हैं।
आयोग का कहना है कि इस संशोधन से मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित होगी। आयोग ने यह भी कहा है कि वह संविधान के अनुच्छेद 326 और RP Act की धारा 16 के अनुसार ही काम कर रहा है।
2003 के बाद पहली बार बिहार में विशेष संशोधन
बिहार में पिछली बार इस तरह का विशेष संशोधन साल 2003 में हुआ था। यानी 22 साल बाद चुनाव आयोग ने फिर से ऐसी प्रक्रिया शुरू की है। संयोगवश, बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जिससे यह मुद्दा और भी अधिक संवेदनशील बन गया है।
संवैधानिक सवाल क्या हैं?
- क्या पहले से वोट डाल चुके नागरिकों को फिर से नागरिकता साबित करनी चाहिए?
- क्या यह प्रक्रिया गरीब, ग्रामीण और दस्तावेज रहित लोगों को बाहर कर सकती है?
- क्या यह विशेष संशोधन संविधान और RP Act का उल्लंघन है?
- क्या इससे लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर असर पड़ेगा?
इन सभी सवालों का उत्तर अब सुप्रीम कोर्ट में बहस और फैसले के बाद ही सामने आएगा।
महुआ मोइत्रा और ADR की याचिकाएं भारत में वोटिंग अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर एक महत्वपूर्ण बहस की शुरुआत हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस दिशा में आने वाले वर्षों की मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
बिहार चुनावों से पहले यह मामला राजनीतिक और संवैधानिक दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।
❓ FAQs: बिहार में मतदाता सूची संशोधन और महुआ मोइत्रा की याचिका
Q1. महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका क्यों दाखिल की है?
उत्तर: महुआ मोइत्रा ने चुनाव आयोग द्वारा बिहार में विशेष मतदाता सूची संशोधन (SIR) प्रक्रिया को संविधान के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया लाखों वैध मतदाताओं को मतदान से वंचित कर सकती है।
Q2. SIR (Special Intensive Revision) क्या है?
उत्तर: SIR एक विशेष प्रक्रिया है जिसके तहत चुनाव आयोग मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए घर-घर जाकर सर्वे करवाता है। इसमें मतदाताओं से नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांगे जाते हैं।
Q3. याचिका में कौन-कौन से संवैधानिक अनुच्छेदों का हवाला दिया गया है?
उत्तर: याचिका में अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 325 और 326 का उल्लंघन बताया गया है। साथ ही, RP Act 1950 और RER Rules 1960 का भी हवाला दिया गया है।
Q4. इस प्रक्रिया से किसे नुकसान हो सकता है?
उत्तर: याचिकाकर्ता के अनुसार, जिन नागरिकों के पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं—जैसे गरीब, ग्रामीण, प्रवासी, बूढ़े और अशिक्षित—उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं, जिससे वे चुनाव में मतदान नहीं कर पाएंगे।
Q5. चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को क्यों जरूरी मान रहा है?
उत्तर: चुनाव आयोग का कहना है कि शहरीकरण, प्रवासन, नई उम्र के मतदाताओं की संख्या में वृद्धि, मृतकों की जानकारी न मिलना और अवैध नागरिकों के नाम जुड़ने जैसे कारणों से यह प्रक्रिया आवश्यक है।
Q6. क्या यह प्रक्रिया पूरे देश में लागू हो सकती है?
उत्तर: याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को अन्य राज्यों में भी ऐसी प्रक्रिया लागू करने से रोके, ताकि समान समस्या अन्य राज्यों में न उत्पन्न हो।
Q7. क्या इससे पहले भी ऐसा संशोधन हुआ है?
उत्तर: हाँ, बिहार में पिछली बार ऐसा विशेष संशोधन वर्ष 2003 में किया गया था। लेकिन उस समय इतने कड़े दस्तावेज़ी नियम नहीं थे।
Q8. क्या और कोई संस्था या व्यक्ति इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट लेकर गया है?
उत्तर: हाँ, NGO Association for Democratic Reforms (ADR) और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव सहित कई संगठनों और व्यक्तियों ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं।