वैश्विक व्यापार परिदृश्य में भारत एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभर रहा है, और इसके साथ ही भारत की नई व्यापार नीति में भी एक स्पष्ट और निर्णायक बदलाव आया है। अब भारत किसी भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA) को समय-सीमा के दबाव में नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों और संप्रभुता को सर्वोपरि रखते हुए अंतिम रूप देने पर जोर दे रहा है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के हालिया बयान इस नई दृढ़ता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि भारत के लिए ‘ डेडलाइन नहीं,फायदा चाहिए देशहित में पहली प्राथमिकता’ है, और प्रत्येक समझौता ‘विन-विन’ यानी दोनों पक्षों के लिए लाभकारी होना चाहिए। यह दृष्टिकोण भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और वैश्विक मंच पर उसके आत्मविश्वास का प्रतीक है।
भारत की नई व्यापार नीति: ‘डेडलाइन नहीं, फायदा चाहिए देशहित में पहली प्राथमिकता’
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने 16वें अंतरराष्ट्रीय टॉय बिज़ एग्जीबिशन के दौरान संवाददाताओं से बात करते हुए भारत की व्यापार नीति के इस नए अध्याय को विस्तार से समझाया। उनका यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच एफटीए को लेकर बातचीत महत्वपूर्ण चरण में है, और कई अन्य देशों के साथ भी व्यापार समझौते पर चर्चा चल रही है। गोयल ने स्पष्ट किया, “भारत अपनी शर्तों पर व्यापार करता है। हमारी प्राथमिकता है कि देश को क्या फायदा होगा।”
यह बयान केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं है, बल्कि यह भारत के दशकों के व्यापारिक अनुभवों का परिणाम है। अतीत में, भारत ने कुछ ऐसे व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, जिनके दीर्घकालिक परिणाम घरेलू उद्योगों और कृषि क्षेत्र के लिए उतने अनुकूल नहीं रहे। इन अनुभवों से सीख लेते हुए, वर्तमान सरकार ने एक अधिक सतर्क और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन के अनुरूप, यह नीति सुनिश्चित करती है कि कोई भी समझौता तब तक स्वीकार्य नहीं होगा जब तक वह भारत के किसानों, श्रमिकों और घरेलू उद्योगों के हितों की रक्षा न करे और उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक समान अवसर प्रदान न करे।
यह ‘विन-विन’ दर्शन केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और रणनीतिक आयाम भी शामिल हैं। भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि व्यापार समझौते न केवल निर्यात बढ़ाएँ और निवेश आकर्षित करें, बल्कि रोजगार सृजन करें, तकनीकी हस्तांतरण को बढ़ावा दें, और देश की खाद्य सुरक्षा या संवेदनशील क्षेत्रों को खतरे में न डालें। यह एक व्यापक दृष्टिकोण है जो केवल तात्कालिक व्यापारिक आंकड़ों से परे जाकर राष्ट्र के समग्र विकास और कल्याण पर केंद्रित है।
एफटीए वार्ताएँ: किन देशों के साथ और क्यों?
पीयूष गोयल ने बताया कि भारत वर्तमान में कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं और व्यापारिक गुटों के साथ व्यापार समझौतों को लेकर सक्रिय रूप से बातचीत कर रहा है। इनमें यूरोपीय यूनियन (EU), न्यूजीलैंड, ओमान, चिली और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश शामिल हैं। प्रत्येक वार्ता का अपना विशिष्ट रणनीतिक और आर्थिक महत्व है:
- यूरोपीय यूनियन (EU): यूरोपीय यूनियन भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है। ईयू के साथ एक व्यापक एफटीए भारत के लिए विशाल यूरोपीय बाजार तक पहुंच खोलेगा, विशेष रूप से कपड़ा, चमड़ा, इंजीनियरिंग सामान, और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं जैसे क्षेत्रों में। यह समझौता यूरोपीय निवेश और उन्नत प्रौद्योगिकियों को भारत में आकर्षित करने में भी मदद कर सकता है। हालांकि, डेटा गोपनीयता, पर्यावरण मानक और कुछ कृषि उत्पादों पर ईयू के कड़े नियम चुनौती पेश करते हैं।
- न्यूजीलैंड: न्यूजीलैंड के साथ एफटीए मुख्य रूप से डेयरी और कृषि उत्पादों पर केंद्रित होगा। भारत अपने विशाल डेयरी उद्योग और किसानों के हितों की रक्षा के लिए इन क्षेत्रों में अत्यधिक संवेदनशील है, जबकि न्यूजीलैंड इन उत्पादों का एक प्रमुख निर्यातक है। यह वार्ता भारत के लिए एक संतुलनकारी कार्य है।
- ओमान: ओमान के साथ एक समझौता भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशिया में रणनीतिक पहुंच के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। यह भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिए खाड़ी क्षेत्र में नए बाजार भी खोल सकता है।
- चिली: चिली के साथ भारत पहले से ही एक सीमित व्यापार समझौते (Preferential Trade Agreement – PTA) पर है। एक पूर्ण एफटीए भारत के लिए लैटिन अमेरिकी बाजारों तक पहुंच का विस्तार कर सकता है, विशेष रूप से खनिजों, कृषि उत्पादों और कुछ विनिर्मित वस्तुओं के लिए।
- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, और दोनों देशों के बीच एक व्यापक एफटीए के दूरगामी परिणाम होंगे। यह समझौता न केवल व्यापार की मात्रा बढ़ाएगा, बल्कि निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकारों और सेवा व्यापार के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाएगा। हालांकि, जैसा कि नीचे विस्तार से बताया गया है, इसमें कई जटिल मुद्दे शामिल हैं।
भारत की नीति इन सभी वार्ताओं में बिल्कुल स्पष्ट है – कोई भी समझौता तभी होगा जब उसमें दोनों देशों को बराबर लाभ हो और भारत के किसानों, श्रमिकों और घरेलू उद्योगों को नुकसान न पहुंचे। यह एक मजबूत संकेत है कि भारत अब केवल बाजार पहुंच पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा है, बल्कि अपने आर्थिक आधार को मजबूत करने और अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने को भी प्राथमिकता दे रहा है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील: जटिलताएँ और मतभेद
भारत और अमेरिका के बीच एफटीए को लेकर बातचीत एक संवेदनशील चरण में है। 26 जून से 2 जुलाई तक वॉशिंगटन डीसी में व्यापार वार्ता का एक और दौर हुआ, जिसमें भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल शामिल हुआ। हालांकि, दोनों देशों के बीच कुछ अहम मुद्दों पर अभी भी सहमति नहीं बन पाई है, जो समझौते को अंतिम रूप देने में बाधा बन रहे हैं।
विवाद के मुख्य मुद्दे:
- कृषि और डेयरी उत्पादों पर आयात नियम: अमेरिका भारत के कृषि और डेयरी बाजारों तक अधिक पहुंच चाहता है। हालांकि, भारत अपने लाखों किसानों और डेयरी उत्पादकों की आजीविका की रक्षा के लिए इन क्षेत्रों में आयात पर कड़े नियम और शुल्क बनाए रखने पर दृढ़ है। यह मुद्दा भारत के लिए अत्यधिक संवेदनशील है क्योंकि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है।
- ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स पर शुल्क: भारत अपने बढ़ते ऑटोमोबाइल उद्योग को संरक्षण देने के लिए कुछ आयातित ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स पर उच्च शुल्क लगाता है। अमेरिका इन शुल्कों को कम करने की मांग कर रहा है, जबकि भारत का मानना है कि इससे उसके घरेलू विनिर्माण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- स्टील और एल्युमिनियम पर अमेरिकी टैरिफ: अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर स्टील और एल्युमिनियम के आयात पर टैरिफ लगाए हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान हुआ है। भारत इन टैरिफ से छूट चाहता है, लेकिन अमेरिका फिलहाल किसी भी देश को ऐसी छूट देने को तैयार नहीं है। यह मुद्दा दोनों देशों के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण रहा है।
- सोशल सिक्योरिटी एग्रीमेंट (Totalization Agreement) पर चर्चा का अभाव: भारत लंबे समय से अमेरिका के साथ एक सोशल सिक्योरिटी एग्रीमेंट (जिसे टोटलइज़ेशन एग्रीमेंट भी कहा जाता है) पर हस्ताक्षर करने की मांग कर रहा है। यह समझौता उन भारतीय पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण है जो अमेरिका में काम करते हैं और अपनी सोशल सिक्योरिटी में योगदान करते हैं, लेकिन उन्हें अक्सर भारत लौटने पर इन लाभों तक पहुंच नहीं मिलती। यह दोहरा कराधान है। भारत चाहता है कि इस मुद्दे को व्यापार वार्ता में शामिल किया जाए, लेकिन अमेरिका इस पर चर्चा करने में अनिच्छुक रहा है।
- भारत की रियायतें और प्रतिस्पर्धा: भारत चाहता है कि उसे टेक्सटाइल, चमड़ा और इंजीनियरिंग सेक्टर में अमेरिका की ओर से दीर्घकालिक रियायतें मिलें ताकि वह वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा कर सके। इन क्षेत्रों में रियायतें भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएंगी।
ये मतभेद दर्शाते हैं कि भारत एक व्यापक और संतुलित समझौते पर पहुंचने के लिए दृढ़ है, न कि केवल एक त्वरित समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए।
India-US Trade Deal: National interest will always be supreme, India won't decide under pressure, says Piyush Goyal https://t.co/eHbo2NTlBC pic.twitter.com/gUuP8BsgUa
— USA UPDATES (@usaupdatessite) July 4, 2025
WTO में भारत का जवाबी वार: रणनीतिक दृढ़ता का प्रदर्शन
भारत ने वैश्विक व्यापार मंच पर अपनी रणनीतिक दृढ़ता का एक और उदाहरण पेश किया है। शुक्रवार को भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) को औपचारिक रूप से सूचित किया कि वह अमेरिका की ओर से 25% टैरिफ लगाने के बाद कुछ अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाएगा। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि अमेरिका ने बिना उचित सूचना के ऑटोमोबाइल पर भारी शुल्क लगा दिया था, जो WTO के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन था।
WTO नोटिफिकेशन में भारत ने स्पष्ट रूप से कहा: “भारत तीस दिनों के बाद अपने रियायतों को निलंबित करने और कुछ अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने का अधिकार रखता है।” यह कदम एक मजबूत संकेत है कि भारत अब एकतरफा व्यापारिक कार्रवाइयों को स्वीकार नहीं करेगा और अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उपयोग करने में संकोच नहीं करेगा।
किन वस्तुओं पर लग सकता है जवाबी शुल्क?
सूत्रों के अनुसार, भारत जिन अमेरिकी उत्पादों पर रिटेलिएटरी टैरिफ लगाने पर विचार कर रहा है, उनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
- व्हिस्की और वाइन: ये उत्पाद अमेरिकी निर्यातकों के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन पर शुल्क लगाने से अमेरिकी शराब उद्योग पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
- नट्स और बादाम: अमेरिका बादाम का एक प्रमुख निर्यातक है, और इन पर शुल्क लगाने से अमेरिकी कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा।
- मोटरबाइक पार्ट्स: यह अमेरिकी ऑटोमोबाइल उद्योग को प्रभावित करेगा, जो भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र पर अमेरिकी शुल्कों के जवाब में एक रणनीतिक कदम है।
- उच्च तकनीकी मशीनरी: यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां अमेरिका का निर्यात मजबूत है, और इस पर शुल्क लगाने से अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर दबाव पड़ेगा।
यह जवाबी कार्रवाई न केवल भारत के व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए है, बल्कि यह वैश्विक व्यापार नियमों के पालन के महत्व को भी रेखांकित करती है। यह भारत की बढ़ती क्षमता को भी दर्शाता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विवादों में अपने अधिकारों का दावा कर सके।
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घरेलू खिलौना उद्योग को सरकारी प्रोत्साहन: आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने इसी अवसर पर एक और महत्वपूर्ण घोषणा की, जो भारत के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि भारत जल्द ही घरेलू खिलौना निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना शुरू करने जा रहा है। इस योजना में उत्पादन और रोजगार सृजन को आधार बनाकर प्रोत्साहन राशि (Incentives) दी जाएगी।
सरकार का लक्ष्य है कि भारतीय खिलौनों को वैश्विक बाज़ार में पहचान मिले और चीन जैसे देशों पर निर्भरता घटे। पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने खिलौनों के आयात में भारी कमी देखी है, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों का सीधा परिणाम है। इस योजना से स्थानीय कारीगरों और छोटे व्यवसायों को लाभ होगा, जिससे न केवल रोजगार सृजन होगा बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने वाले अद्वितीय खिलौनों का उत्पादन भी बढ़ेगा। यह ‘वोकल फॉर लोकल’ पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादों को बढ़ावा देना है।
India’s stance on trade agreements remains firm: National interest first, no deadlines. Piyush Goyal reiterates focus on ‘win-win’ deals, even as FTA talks with US, EU, and others progress. This strategic shift is key for #AtmanirirbharBharat. #TradePolicy #IndiaUSFTA #WTO
— India Trade News (@IndiaTradeNews) June 18, 2025
गोलमोल नहीं, स्पष्ट नीति: देशहित सर्वोपरि
पीयूष गोयल के बयानों से यह स्पष्ट है कि भारत की व्यापार नीति अब पुरानी सोच से बिल्कुल अलग है। पहले जहां कई सरकारें अंतरराष्ट्रीय दबाव या राजनीतिक समयसीमा के कारण हड़बड़ी में व्यापार समझौते कर लेती थीं, वहीं अब केंद्र सरकार का जोर है “No Deadline, Only National Interest”।
उन्होंने जोर देकर कहा, “FTA सिर्फ कागज़ पर दस्तखत की बात नहीं है, यह हमारे किसानों, उद्योगों और कामगारों के भविष्य का मामला है। हम कोई भी समझौता जल्दबाज़ी में नहीं करेंगे।” यह दृष्टिकोण भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और वैश्विक मंच पर उसके आत्मविश्वास का प्रतीक है। भारत अब अपनी शर्तों पर खेल रहा है, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक कदम उसके दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक हितों के अनुरूप हो।
भारत का आत्मनिर्भर और रणनीतिक रुख
भारत अब विश्व मंच पर एक आत्मनिर्भर और दृढ़ संकल्प वाला खिलाड़ी बन चुका है। चाहे WTO में जवाबी कार्रवाई की बात हो, या घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने की योजना – सरकार हर मोर्चे पर निश्चित नीति और रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है।
यह केवल व्यापार समझौतों के बारे में नहीं है; यह भारत के वैश्विक संबंधों, उसकी आर्थिक संप्रभुता और उसके लोगों के कल्याण के बारे में है। भारत अब एक ऐसे भविष्य की ओर देख रहा है जहाँ वह वैश्विक व्यापार का एक अभिन्न अंग है, लेकिन अपनी शर्तों पर। यह एक ऐसा भारत है जो अपनी सीमाओं और अपने लोगों की रक्षा के लिए तैयार है, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी उचित जगह का दावा भी कर रहा है। ट्रेड डील्स को लेकर भारत की सोच अब सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं रही। यह अब रणनीतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय हितों से जुड़ा विषय बन चुका है।