दिल्ली में ‘कृत्रिम वर्षा’ का ऐतिहासिक प्रयोग: क्लाउड सीडिंग 4-11 जुलाई के बीच

Sanyam
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दिल्ली सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए कृत्रिम वर्षा 4 से 11 जुलाई 2025 तक अपने पहले “आर्टिफिशियल रेन” यानी क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन का आयोजन कर रही है। IIT कानपुर इस तकनीकी प्रयोग का नेतृत्व कर रहा है। IMD और DGCA से सभी आवश्यक स्वीकृतियाँ मिल चुकी हैं। इस रणनीति का उद्देश्य वायुमंडलीय प्रदूषकों—विशेषतः PM2.5 और PM10—को बारिश के माध्यम से ‘वॉश आउट’ कर दिल्लीवासियों को स्वच्छ हवा प्रदान करना है |


🗓️ परियोजना का समय और योजना

  • तारीख एवं अवधि:
    क्लाउड सीडिंग का कार्यक्रम 4 जुलाई से 11 जुलाई 2025 तक निर्धारित किया गया है, क्योंकि IMD ने इस अवधि को मौसम के अनुसार प्रयोग-योग्य बताया है।
  • प्रारंभिक तयारी:
    पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिंह सिर्सा के अनुसार जुलाई 3 से पहले मौसम क्लाउड सीडिंग के योग्य नहीं है; इसलिए 4-11 तक का “उपयुक्त विंडो” चुना गया है।
  • अनुमतियाँ:
    DGCA को फ्लाइट प्लान और तकनीकी विवरण IIT कानपुर की तरफ से भेजे जा चुके हैं। साथ ही IMD पुणे ने डीटीजीसीए के अंतर्गत तकनीकी समन्वय भी सुनिश्चित किया है ।
दिल्ली में ‘कृत्रिम वर्षा’ का ऐतिहासिक प्रयोग: क्लाउड सीडिंग 4-11 जुलाई के बीच

🛩️ उड़ान और संचालन विवरण

पहलूजानकारी
उड़ान संख्याकुल 5 sorties, हर एक ~90 मिनट चलेगी
क्षेत्र कवरेजलगभग 100 वर्ग किलोमीटर प्रति उड़ान, जिसमें उत्तरी/बाहरी दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्र (रोहिणी, बावाना, अलीपुर, बुराड़ी) शामिल होंगे।
विमान प्रकारपरिवर्तित Cessna विमान, फ्लेयर सिस्टम से क्लाउड में सीडिंग मिक्स रिलीज करेगा ।

🔬 सीडिंग मिश्रण की संरचना

दिल्ली में ‘कृत्रिम वर्षा’ का ऐतिहासिक प्रयोग: क्लाउड सीडिंग 4-11 जुलाई के बीच
  • मुख्य घटक:
    • सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स (AgI)
    • आयोडाइज्ड नमक
    • रॉक साल्ट।
  • कार्यप्रणाली का विज्ञान:
    ये पदार्थ बादलों में नाभिक (nuclei) का कार्य करते हैं। वे बादल की आर्द्रता वाले हिस्सों में पानी के कणों को आपस में जुड़ने और भारी बूंद बनाकर वर्षा में रूपांतरित करने में मदद करते हैं।
  • जलवायु के अनुकूल:
    विधि विशेष रूप से निम्मोस्ट्रैटस जैसे कम ऊंचाई वाले, ५०% से अधिक नमी वाले मेघों के लिए उपयुक्त है; इन शहरी मंडलों में आदर्श मौसम यही रहता है।

💰 लागत और वित्तीय विवरण

  • कुल खर्च:
    लगभग ₹3.21 करोड़ आंके गए हैं।
  • उपारोहण:
    प्रत्येक उड़ान लगभग ₹55 लाख खर्च करेगी, जबकि उपकरण, मिश्रण निर्माण और तकनीकी कार्य में ₹66 लाख का हिस्सा शामिल है (अनुमानित विवरण मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर) ।

🌡️ विश्वसनीयता और जोखिम

  • कितनी प्रभावी?
    क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य बादल में बारिश कणों को तेज़ी से बनाना है; सफल प्रयोगों पर बारिश एक घंटे के भीतर हो सकती है — ऐसे परिणाम IIT कानपुर ने ग्रामीण प्रयोगों के दौरान प्राप्त किए हैं ।
  • परिरक्षण रूप:
    बारिश के जरिए PM2.5/PM10 जैसे प्रदूषक हवा से “वॉश आउट” होकर जमीन पर गिरेंगे; इससे वायु गुणवत्ता अस्थायी रूप से सुधरती है।
  • चुनौतियाँ और विवाद:
    क्लाउड सीडिंग की क्षमता और दीर्घकालिक प्रभाव अभी वैज्ञानिक बहस का विषय हैं। कुछ अध्ययनों में यह पाया गया कि यह साधना विश्वसनीय नहीं है और प्रत्येक क्षेत्र के लिए 0–20% तक वर्षा वृद्धि की संभावना बताई गई है । साथ ही, दक्षिणी शीतल क्लाउड्स जैसे निम्मोस्ट्रैटस के बिना प्रभावशाली परिणाम नहीं मिलते।

भारत में क्लाउड सीडिंग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • देश में प्रयोग:
    महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में वर्षा बुलाज़े हेतु क्लाउड सीडिंग की जाती रही है। उदाहरण के लिए वर्षा वृद्धि स्थानीय स्तर पर करीब 18% तक देखी गई।
  • विश्व स्तर पर:
    चीन ने बादलों बिटवीन-ओलिम्पिक्स के दौरान वर्षा नियंत्रित करने के लिए तकनीकों का इस्तेमाल किया। संयुक्त अरब अमीरात ने भी नियमित क्लाउड सीडिंग से वर्षा तेज करने के लिए वर्ष 2024 तक योजनाएँ लागू की हैं ।
  • वैज्ञानिक आरंभ:
    वर्ष 1946 में General Electric के बर्नार्ड वॉननेगुट ने सिल्वर आयोडाइड के उपयोग से क्लाउड सीडिंग की क्षमताओं का आविष्कार किया था।

⚖️ राजनीतिक और सार्वजनिक बात-चीत

  • राजनीतिक विवाद: दिल्ली अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने BJP और केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि ये केवल भाषणबाज़ी करने में सक्षम हैं। इस पर Environment Minister Sirsa ने कहा—“हम MoU पहले किए, IIT कानपुर को भुगतान किए और सभी अनुमतियाँ लीं… सिर्फ हम काम कर रहे हैं”।
  • आलोचनात्मक दृष्टिकोण:
    Wired जैसी वैश्विक मीडिया ने चेताया है कि क्लाउड सीडिंग तात्कालिक राहत दे सकती है, लेकिन प्रदूषण के वास्तविक स्रोतों—जैसे वाहनों, जल रही कृषि, निर्माण धूल—पर वैश्विक काम किए बिना स्थायी प्रभाव नहीं मिलेगा ।

🎯 निष्कर्ष और आगे का रास्ता

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग आधारित कृत्रिम वर्षा का यह पहला प्रयोग एक “परीक्षण” है:

  • अस्थायी समाधान:
    वर्षा से वायु में सुधार तो संभव है, लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं।
  • मौसम-संवेदनशील:
    केवल उपयुक्त बादल और नमी होने पर ही सफल हो सकता है।
  • विस्तृत निगरानी अनिवार्य:
    यह तकनीक लागू होने के बाद समय-समय पर डेटा—बारिश की मात्रा, वायु गुणवत्ता, मृदा में रसायन संग्रह—का मॉनिटरिंग जरूरी होगा।
  • भविष्य की रूपरेखा:
    यदि 4-11 जुलाई का विंडो सफल होता है, तो भविष्य के मॉनसून में विस्तार या नए प्रयोग संभव हैं।

आप से क्या उम्मीद रखी जाए?

  1. 4 जुलाई के आसपास मौसम अपडेट देखें — अगले सप्ताह IMD का दैनिक पूर्वानुमान देखें और क्लाउड सीडिंग की संभावना जाँचें।
  2. वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग — यह देखें कि बारिश से AQI में कितना सुधार हुआ।
  3. वैज्ञानिक अध्ययन पर ध्यान दें — IIT कानपुर और अन्य संस्थानों के रिपोर्ट्स पर नज़र रखें।
  4. प्रभावों पर बहस जारी रखें — सरकार, वैज्ञानिक और आम जनता की आलोचना-समर्थन एक साथ चलेंगे।

📝 संपूर्ण परिप्रेक्ष्य

  • क्या? दिल्ली में पहली बार कृत्रिम वर्षा (cloud seeding) का आयोजन।
  • कब? 4–11 जुलाई 2025 (पहले मौसम अनुपयुक्त था)।
  • कौन? तकनीकी रूप से IIT कानपुर, IMD पुणे, DGCA, दिल्ली सरकार।
  • कैसे? SILVER IODIDE + नमक आधारित फ्लेयर सिस्टम से क्लाउड में ड्रॉप्स तेजी से क़ानूनी बारिश हेतु प्रेरित।
  • कितनी लागत? अनुमानित ₹3.21 करोड़।
  • उपयोगिता: वायु प्रदूषण को ‘वॉश आउट’ कर AQI में सुधार संभव।
  • सीमा: मौसम पर निर्भरता, वैज्ञानिक बहस, स्थाई समाधान नहीं।

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