दलाई लामा उत्तराधिकार विवाद: भारत-चीन तनाव का नया अध्याय

Sanyam
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14वें दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता हैं, अपने उत्तराधिकार पर महत्वपूर्ण बयान देते हुए।

तिब्बती बौद्ध धर्म के 14वें दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, केवल एक आध्यात्मिक नेता नहीं हैं; वे तिब्बती संस्कृति, पहचान और स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। हाल ही में उनके उत्तराधिकार को लेकर दिए गए उनके बयानों ने एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है, और इसके भू-राजनीतिक परिणाम, खासकर भारत और चीन के संबंधों पर, गहरे होते जा रहे हैं। दलाई लामा ने घोषणा की है कि उनकी मृत्यु के बाद भी “दलाई लामा संस्था” बनी रहेगी, और उनके पुनर्जन्म को केवल गदेन फोड्रांग ट्रस्ट ही मान्यता देगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी और संस्था को इसमें कोई अधिकार नहीं होगा। यह घोषणा सीधे तौर पर बीजिंग की उन इच्छाओं को चुनौती देती है जो तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे बड़े आध्यात्मिक पद पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है। यह विवाद केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह तिब्बत के भविष्य, भारत की कूटनीतिक स्थिति और भारत-चीन संबंधों में बढ़ते तनाव का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

Contents
1. पृष्ठभूमि और ताज़ा घटनाक्रमदलाई लामा का बयान: संस्था की निरंतरता पर जोरचीन की प्रतिक्रिया: ‘गोल्डन अर्न’ पद्धति पर जोरगदेन फोड्रांग ट्रस्ट: तिब्बती विरासत का संरक्षक2. भारत सरकार की प्रतिक्रियाविदेश मंत्रालय का बयान: धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मानअल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू की टिप्पणियाँ: भावनात्मक समर्थन3. भू‑राजनीतिक असर: भारत‑चीन तनावतिब्बत और भारत‑चीन संबंधों पर प्रभाव4. निर्वासित तिब्बती सरकार की प्रतिक्रियापेनपा त्सेरिंग का बयान: वार्ता की चुनौतियाँ और भारत का समर्थन5. दलाई लामा की वार्षिक यादगार और भविष्य की दिशा90वां जन्मदिन समारोह: आध्यात्मिक और राजनीतिक संदेशसंभावित द्वितीय दलाई लामा: एक नया अध्याय6. निष्कर्ष धार्मिक तटस्थता बनाम राजनीतिक संवेदनशीलताभारत‑चीन सीमा विवाद पर असरअंतिम विचारअक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ) – दलाई लामा उत्तराधिकार विवाद पर

1. पृष्ठभूमि और ताज़ा घटनाक्रम

दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा चीन और तिब्बती निर्वासित समुदाय के बीच कई दशकों से एक संवेदनशील विषय रहा है। चीन तिब्बती बौद्ध धर्म पर अपना नियंत्रण चाहता है, जबकि दलाई लामा और उनके अनुयायी तिब्बती परंपराओं की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए दृढ़ हैं। हाल ही में हुई घटनाओं ने इस विवाद को एक नया मोड़ दिया है।

दलाई लामा का बयान: संस्था की निरंतरता पर जोर

2 जुलाई, 2025 को, 14वें दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो ने एक बहुत महत्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने साफ किया कि उनकी मृत्यु के बाद भी “दलाई लामा संस्था” जारी रहेगी। इस बयान से यह बात सामने आती है कि दलाई लामा का पद केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवित आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संस्था है जो तिब्बती लोगों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने कहा कि उनके पुनर्जन्म को केवल गदेन फोड्रांग ट्रस्ट ही मान्यता देगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अन्य संस्था, विशेष रूप से चीनी सरकार, को इसमें कोई अधिकार नहीं होगा। यह घोषणा चीन के उन दावों को सीधे तौर पर खारिज करती है जो दलाई लामा के उत्तराधिकार प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना चाहता है। दलाई लामा का यह कदम तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वायत्तता और पवित्रता को बनाए रखने के लिए एक मजबूत संदेश है, जो किसी भी बाहरी, खासकर राजनीतिक, हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है।

चीन की प्रतिक्रिया: ‘गोल्डन अर्न’ पद्धति पर जोर

दलाई लामा के बयान पर बीजिंग ने तुरंत और तीखी आपत्ति जताई। चीन ने फिर से कहा कि दलाई लामा या बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी आध्यात्मिक निकाय की पहचान केवल “गोल्डन अर्न” (Golden Urn) पद्धति से होनी चाहिए। इस पद्धति में, चीनी सरकार द्वारा मंजूर किए गए उम्मीदवारों के नाम एक सुनहरे कलश में रखे जाते हैं और फिर एक लामा द्वारा एक नाम निकाला जाता है, जिस पर अंततः चीनी सरकार की अंतिम मंजूरी होती है। चीन का दावा है कि यह पद्धति सदियों से तिब्बती धर्मगुरुओं के चयन में इस्तेमाल होती रही है, हालांकि तिब्बती समुदाय इस दावे को विवादित मानता है, खासकर दलाई लामा के चयन के मामले में। चीन का यह रुख तिब्बती बौद्ध धर्म पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने की उसकी लंबी रणनीति का हिस्सा है, ताकि वह तिब्बती लोगों पर अपने राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव को मजबूत कर सके और तिब्बत में किसी भी तरह के विरोध को दबा सके।

गदेन फोड्रांग ट्रस्ट: तिब्बती विरासत का संरक्षक

दलाई लामा द्वारा बताए गए गदेन फोड्रांग ट्रस्ट एक गैर-लाभकारी संस्था है जो भारत में काम करती है। इसे दलाई लामा ने 2015 में स्थापित किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य उनकी आध्यात्मिक संस्था और तिब्बती सांस्कृतिक विरासत को बचाना है। यह ट्रस्ट दलाई लामा के कार्यालय के प्रशासनिक और वित्तीय मामलों का प्रबंधन करता है, और उनके उत्तराधिकार की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जैसा कि दलाई लामा ने खुद घोषित किया है। भारत में इस ट्रस्ट की मौजूदगी और इसकी गतिविधियों को भारत सरकार का मौन समर्थन मिलता है, जो तिब्बती समुदाय के लिए एक सुरक्षित जगह प्रदान करता है और उनकी परंपराओं को चीनी हस्तक्षेप से बचाने में मदद करता है। यह ट्रस्ट तिब्बती पहचान को जीवित रखने और भविष्य की पीढ़ियों तक तिब्बती बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. भारत सरकार की प्रतिक्रिया

दलाई लामा के बयान और चीन की आपत्ति के बाद, भारत सरकार की प्रतिक्रिया ने इस संवेदनशील मुद्दे पर उसके सावधानीपूर्वक कूटनीतिक संतुलन को दिखाया है।

विदेश मंत्रालय का बयान: धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने 4 जुलाई, 2025 को इस मुद्दे पर भारत के आधिकारिक रुख को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा: “भारत सरकार धार्मिक आस्थाओं और विश्वासों पर किसी विषय में कोई रुख नहीं लेती। हम हमेशा सभी की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते आए हैं और आगे भी करेंगे।” यह बयान दलाई लामा के ट्रस्ट-आधारित उत्तराधिकारी की घोषणा के दो दिन बाद आया, जबकि चीन ने इस पर आपत्ति जताई थी।

यह प्रतिक्रिया भारत की पुरानी नीति को दर्शाती है जो धार्मिक मामलों में तटस्थता बनाए रखती है, लेकिन साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता के सार्वभौमिक सिद्धांत का भी समर्थन करती है। यह एक कूटनीतिक संतुलन का काम है, जहाँ भारत चीन को सीधे तौर पर चुनौती दिए बिना तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपराओं और दलाई लामा के आध्यात्मिक नेतृत्व के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता है। भारत इस बात पर जोर देता है कि दलाई लामा का उत्तराधिकार एक धार्मिक मामला है, न कि राजनीतिक, और इसलिए इसमें बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यह स्थिति भारत को तिब्बती निर्वासित समुदाय के लिए एक विश्वसनीय मेजबान के रूप में अपनी भूमिका बनाए रखने में मदद करती है, जबकि चीन के साथ अपने जटिल संबंधों को भी संभालती है।

अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू की टिप्पणियाँ: भावनात्मक समर्थन

विदेश मंत्रालय के औपचारिक बयान के अलावा, अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू की टिप्पणियाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। रिजिजू, जो खुद बौद्ध हैं और अरुणाचल प्रदेश से आते हैं (जो चीन के साथ सीमा साझा करता है), ने दलाई लामा के प्रति अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा व्यक्त की। उन्होंने दोहराया: “मैं दलाई लामा का भक्त हूं। उनके उत्तराधिकारी का निर्णय ही उन्हें लेना चाहिए, और इसके लिए सरकार की कोई ज़रूरत नहीं।” यह बयान भारत की “धार्मिक तटस्थता” की नीति को पुष्ट करता है, लेकिन एक बौद्ध मंत्री के रूप में उनकी व्यक्तिगत टिप्पणी तिब्बती समुदाय के प्रति भारत की गहरी सहानुभूति और भावनात्मक समर्थन को दर्शाती है।

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि रिजिजू ने घोषणा की कि सरकार के प्रतिनिधि—उनके साथ-साथ जे.डी.यू. के राजीव रंजन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग—6 जुलाई को धरमशाला में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह में शामिल होंगे। यह उपस्थिति केवल एक औपचारिक शिष्टाचार नहीं है; यह एक मजबूत राजनीतिक संदेश है। यह दर्शाता है कि भारत, चीन की आपत्तियों के बावजूद, दलाई लामा के आध्यात्मिक नेतृत्व और तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ है। यह उपस्थिति चीन के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि भारत तिब्बती मुद्दे पर अपनी स्थिति से पीछे नहीं हटेगा, भले ही वह सीधे तौर पर चीन की संप्रभुता को चुनौती न दे। यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘पड़ोसी पहले’ नीतियों के साथ भी मेल खाता है, जो सीमावर्ती राज्यों और क्षेत्रों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर देती हैं।

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3. भू‑राजनीतिक असर: भारत‑चीन तनाव

दलाई लामा का उत्तराधिकार विवाद भारत और चीन के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों में एक और परत जोड़ता है। यह मुद्दा केवल एक धार्मिक विवाद नहीं है, बल्कि यह तिब्बत की आत्म-पहचान, सांस्कृतिक स्थापितता और भारत-चीन सीमा विवाद से गहराई से जुड़ा है।

तिब्बत और भारत‑चीन संबंधों पर प्रभाव

दलाई लामा का पूरा प्रश्न तिब्बत की आत्म-पहचान, सांस्कृतिक स्थापितता और भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़ा है। चीन तिब्बत को अपना अविभाज्य हिस्सा मानता है और दलाई लामा को एक अलगाववादी के रूप में देखता है। दलाई लामा के उत्तराधिकार पर चीन का नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करने और तिब्बती लोगों के बीच किसी भी प्रकार के विरोध को दबाने की उसकी रणनीति का हिस्सा है।

चीन का दावा है कि उसने दलाई लामा सहित बड़े तिब्बती धर्मगुरुओं के पुनर्जन्म का “गोल्डन अर्न” से चयन पिछली शताब्दियों से किया है। यह दावा तिब्बती परंपराओं के विपरीत है, जहाँ सर्वोच्च लामाओं का चयन जटिल आध्यात्मिक प्रक्रियाओं और संकेतों के माध्यम से होता है, न कि राजनीतिक हस्तक्षेप से। भारत की भूमिका पारंपरिक रूप से तिब्बती मुद्दे पर तटस्थ रही है, लेकिन किरण रिजिजू जैसे भारतीय नेताओं के बयान और दलाई लामा के जन्मदिन समारोह में भारतीय प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने संकेत दिया है कि भारत तिब्बती आध्यात्मिकता पर भी भावनात्मक रूप से खड़ा है। यह चीन के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि वह तिब्बत को अपनी आंतरिक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है।

यह स्थिति भारत और चीन के बीच तनाव को और बढ़ा सकती है। 2020 में पूर्वी लद्दाख में हुई झड़पों के बाद से दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बना हुआ है। दलाई लामा का उत्तराधिकार विवाद इस तनाव को एक और स्तर पर ले जाता है, जहाँ धर्म और राजनीति अपनी अलग राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि सीधे तौर पर भू-राजनीतिक हितों को प्रभावित कर रहे हैं। चीन भारत की इस ‘धार्मिक तटस्थता’ को तिब्बती अलगाववादियों के लिए समर्थन के रूप में देख सकता है, जिससे सीमा विवाद और तिब्बती मुद्दे पर उसकी संवेदनशीलता और बढ़ सकती है।

4. निर्वासित तिब्बती सरकार की प्रतिक्रिया

निर्वासित तिब्बती सरकार (जिसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन भी कहा जाता है) दलाई लामा के नेतृत्व में काम करती है और तिब्बती लोगों के अधिकारों और हितों का प्रतिनिधित्व करती है। दलाई लामा के उत्तराधिकार के मुद्दे पर उनकी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है।

पेनपा त्सेरिंग का बयान: वार्ता की चुनौतियाँ और भारत का समर्थन

निर्वासित तिब्बती सरकार के अध्यक्ष पेनपा त्सेरिंग ने चीन के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता जारी रखने की बात कही है। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि चीन की “कट्टर नीति” के कारण कोई ठोस परिणाम नहीं दिखते। चीन तिब्बती प्रतिनिधियों के साथ किसी भी सार्थक बातचीत में तब तक शामिल होने से इनकार करता है जब तक वे दलाई लामा को एक राजनीतिक नेता के रूप में मान्यता देना बंद न करें और तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग को छोड़ न दें, जो तिब्बती पक्ष के लिए अस्वीकार्य है। यह गतिरोध दर्शाता है कि चीन तिब्बत पर अपनी पकड़ ढीली करने को तैयार नहीं है।

त्सेरिंग ने यह भी खुलासा किया कि अमेरिकी वित्तीय सहयोग घटकर $14 मिलियन से $9 मिलियन प्रति वर्ष रह गया है। यह कमी तिब्बती समुदाय के लिए एक चुनौती है, क्योंकि वे अपनी गतिविधियों और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए बाहरी धन पर निर्भर करते हैं। ऐसे में, उन्होंने जोर दिया कि भारत का योगदान सबसे बड़ा है। यह तथ्य भारत की तिब्बती समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता और उनके संघर्ष में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। भारत न केवल दलाई लामा को शरण प्रदान करता है, बल्कि तिब्बती स्कूलों, मठों और सांस्कृतिक संस्थानों को भी महत्वपूर्ण वित्तीय और ढांचागत सहायता प्रदान करता है, जिससे तिब्बती पहचान और परंपराएं जीवित रह सकें। यह भारत को तिब्बती कारण का एक अपरिहार्य समर्थक बनाता है।

5. दलाई लामा की वार्षिक यादगार और भविष्य की दिशा

दलाई लामा का जीवन और उनकी आध्यात्मिक यात्रा तिब्बती लोगों के लिए आशा का प्रतीक रही है। उनके 90वें जन्मदिन समारोह और उनके उत्तराधिकार पर उनके विचारों ने भविष्य की दिशा के बारे में महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं।

90वां जन्मदिन समारोह: आध्यात्मिक और राजनीतिक संदेश

6 जुलाई, 2025 को धरमशाला में दलाई लामा का 90वां जन्मदिन मनाया जाएगा। यह समारोह केवल एक आध्यात्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश भी देगा। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू सहित भारत सरकार के प्रतिनिधियों की उपस्थिति, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, तिब्बती समुदाय के प्रति भारत की एकजुटता और दलाई लामा के आध्यात्मिक नेतृत्व के प्रति उसके सम्मान को दर्शाएगी। यह चीन के उन दावों को भी कमजोर करता है जो दलाई लामा को एक महत्वहीन व्यक्ति या अलगाववादी नेता के रूप में चित्रित करने का प्रयास करता है। यह समारोह तिब्बती संस्कृति और पहचान को वैश्विक मंच पर उजागर करने का एक अवसर भी होगा, और दुनिया को यह याद दिलाएगा कि तिब्बत का मुद्दा अभी भी जीवित है और उसे संबोधित करने की आवश्यकता है।

संभावित द्वितीय दलाई लामा: एक नया अध्याय

दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकार के बारे में कुछ महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं, जो भविष्य के लिए एक नया अध्याय खोल सकते हैं। उन्होंने संकेत दिया है कि उनका पुनर्जन्म बिना लिंग प्रतिबंध (महिला भी संभव) और तिब्बत के बाहर होगा—शायद भारत या निर्वासन में जन्म लेने वाले किसी बच्चे के रूप में। यह घोषणा कई मायनों में क्रांतिकारी है।

  • लैंगिक समानता: एक महिला दलाई लामा की संभावना तिब्बती बौद्ध धर्म में लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जो सदियों पुरानी परंपराओं को आधुनिक मूल्यों के साथ संरेखित करेगा।
  • तिब्बत के बाहर पुनर्जन्म: यदि अगला दलाई लामा तिब्बत के बाहर, विशेषकर भारत में जन्म लेता है, तो यह चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती होगी। यह तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य में भारत की भूमिका को और मजबूत करेगा और चीन के उन प्रयासों को विफल कर देगा जो तिब्बत के भीतर उत्तराधिकारी का चयन करके उस पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है। यह तिब्बती समुदाय के लिए भी एक मजबूत संदेश होगा कि उनकी आध्यात्मिक विरासत चीनी शासन से बाहर भी सुरक्षित और जीवित रह सकती है। यह दलाई लामा की दूरदर्शिता को भी दर्शाता है कि वह तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य को चीनी नियंत्रण से दूर रखना चाहते हैं।

6. निष्कर्ष

दलाई लामा का उत्तराधिकार विवाद एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जो धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक पहचान, मानवाधिकार और भू-राजनीतिक हितों को एक साथ जोड़ता है। भारत इस संवेदनशील स्थिति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

धार्मिक तटस्थता बनाम राजनीतिक संवेदनशीलता

भारत ने कानूनन धार्मिक मामलों में तटस्थ रुख अपनाया है, लेकिन आत्मीय रूप से उसने दलाई लामा की आध्यात्मिक संस्था का समर्थन किया है—जो चीनी मनोबल और राजनैतिक आकांक्षाओं से टकराव पैदा करता है। भारत की यह नीति उसे एक नाजुक संतुलन बनाए रखने की अनुमति देती है: वह धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का सम्मान करता है और दलाई लामा को शरण प्रदान करता है, जबकि साथ ही चीन के साथ अपने संबंधों को पूरी तरह से तोड़ने से भी बचता है। यह संतुलन भारत को तिब्बती समुदाय के लिए एक नैतिक और व्यावहारिक समर्थन प्रणाली के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने में मदद करता है, जबकि चीन के साथ सीमा विवाद और अन्य भू-राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत के रास्ते खुले रखता है।

भारत‑चीन सीमा विवाद पर असर

दलाई लामा का उत्तराधिकार विवाद भारत-चीन की सीमा पर हालिया तनाव (जैसे 2020 लद्दाख झड़प) को एक और स्तर दिया है—जहां धर्म और राजनीति अपनी अलग राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभुत्व के दावों को प्रभावित कर रहे हैं। चीन दलाई लामा के उत्तराधिकार पर अपने नियंत्रण को तिब्बत पर अपनी संप्रभुता के विस्तार के रूप में देखता है, जबकि भारत का तिब्बती समुदाय के प्रति समर्थन चीन के लिए एक चुनौती है। यह मुद्दा भविष्य में भारत-चीन संबंधों में और अधिक जटिलताएँ पैदा कर सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच अविश्वास और प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।

अंतिम विचार

भारत का स्पष्ट रुख यह दर्शाता है कि धार्मिक मामलों में उसकी सरकार हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन इसके साथ-साथ वह दलाई लामा के आध्यात्मिक नेतृत्व और तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के प्रति गहरा सम्मान रखता है। यह संतुलन इसे एक संवेदनशील नीति स्थिति में रखता है—जहां उसे धार्मिक संवेदनशीलता को बनाए रखते हुए, मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में चीन के साथ कूटनीतिक तरीके से काम करना है। दलाई लामा का उत्तराधिकार तिब्बत के भविष्य और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होगी, और भारत की भूमिका इसमें केंद्रीय बनी रहेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ) – दलाई लामा उत्तराधिकार विवाद पर

Q1. भारत सरकार ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर क्या बयान दिया है? उत्तर: भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी धार्मिक आस्था या विश्वास से संबंधित मामलों में कोई रुख नहीं अपनाती। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत हमेशा धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करता रहा है और आगे भी करता रहेगा।

Q2. दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी को लेकर क्या घोषणा की है? उत्तर: दलाई लामा ने 2 जुलाई, 2025 को कहा कि उनका उत्तराधिकारी केवल “गदेन फोड्रांग ट्रस्ट” द्वारा मान्यता प्राप्त होगा और यह फैसला पूरी तरह तिब्बती बौद्ध धर्मगुरुओं का होगा—न कि चीन का।

Q3. क्या चीन भी दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर दावा करता है? उत्तर: हाँ, चीन दावा करता है कि दलाई लामा का अगला अवतार “गोल्डन अर्न” प्रक्रिया के जरिए चुना जाएगा, जिस पर अंतिम नियंत्रण चीनी सरकार का होगा। तिब्बती समुदाय और दलाई लामा ने इस दावे को खारिज कर दिया है।

Q4. विदेश मंत्रालय का बयान क्यों महत्वपूर्ण है? उत्तर: यह बयान ऐसे समय पर आया है जब चीन और तिब्बत के बीच तनाव बढ़ रहा है। भारत का तटस्थ रुख यह दिखाता है कि वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन तिब्बती परंपराओं का सम्मान करता है।

Q5. क्या भारत सरकार दलाई लामा के जन्मदिन समारोह में शामिल होगी? उत्तर: हाँ, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, और सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग 6 जुलाई को धरमशाला में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह में शामिल होंगे।

Q6. गदेन फोड्रांग ट्रस्ट क्या है? उत्तर: गदेन फोड्रांग ट्रस्ट एक गैर-लाभकारी संस्था है जिसे दलाई लामा ने स्थापित किया है। इसका उद्देश्य उनकी संस्था और आध्यात्मिक उत्तराधिकार को संरक्षित करना है।

Q7. क्या अगला दलाई लामा भारत में जन्म ले सकता है? उत्तर: दलाई लामा ने संकेत दिए हैं कि उनका अगला अवतार तिब्बत के बाहर, संभवतः भारत में जन्म ले सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह अवतार पुरुष या महिला कोई भी हो सकता है।

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By Sanyam
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